101+ Muharram Shayari in Hindi | मुहर्रम पर शायरी हिंदी में (2024)
दोस्तों आपने बहुत सारी शायरी सुनी होगी लेकिन क्या आपने मोहर्रम शरीफ पर शायरी सुनी है जब भी मोहर्रम का महीना आता है तब मोहर्रम शायरी (Muharram Shayari) बहुत ज्यादा पढ़ी जाती है इसलिए आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए मोहर्रम शायरी (Muharram Shayari in Hindi) लेकर आए हैं जिन्हें आप मोहर्रम के महीने में पढ़ सकते हैं या किसी भी वक्त पढ़ सकते हैं मोहर्रम शायरी अक्सर मोहर्रम के महीने में पढ़ी जाने वाली शायरी होती है।
यदि आप बेहतरीन बेहतरीन मोहर्रम शायरी (Muharram Shayari) पढ़ना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही वेबसाइट पर आए हैं क्योंकि आज की पोस्ट में हम शायरी लेकर आए हैं जो काफी बेहतर है जिन्हें पढ़कर आप महफिल की रौनक को बढ़ा सकते हैं। मोहर्रम शायरी (Muharram Shayari) मुसलमानों में मोहर्रम के महीने में पड़े जाने वाली शायरी है नीचे के लेख में हमने आपको मोहरा शायरी दी हैं जो आपको काफी पसंद आएंगी।
Best 105+ स्वागत के लिए दो शब्द
क़तल ए हुसैन असल मैं मर्ग ए यज़ीद है,
इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद।
बाला के गम उठाए जा रहे हैं,
जफ़ा के तीर ख़ैर जा रहे हैं।
वो जिसने अपने नाना का वादा वफ़ा कर दिया,
घर का घर सुपर्द-ए-खुदा कर दिया,
नोश कर लिया जिसने शहादत का जाम,
उस हुसैन इब्ने-अली पर लाखों सलाम।
तुम्हें क्या बताएं इश्क में क्या लुटाए,
आल ए नबी ने लिख दिया सारा हिसाब रेत पर,
यूँ ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का,
कुछ देख के हुआ था जमाना हुसैन का,
सर दे के जो जहाँ की हुकूमत खरीद ली,
महँगा पड़ा यजीद को सौदा हुसैन का।
करबला को करबला के शहंशाह पर नाज है,
उस नवासे पर मोहम्मद को नाज़ है,
यूँ तो लाखों सर झुके सजदे में लेकिन,
हुसैन ने वो सजदा किया जिस पर खुदा को नाज़ है
करबल के इंतेज़ार की शिदत ना पुछिये,
उर्रा की खाक ताकत थी रास्ता हुसैन का।
तमन्ना थी काय पैवंद ए कर्बला होते,
अगरचाय खाक हे होते मगर खाक ए शिफा होते।
ख़ुदा काए होने की तस्दीक “ला” में शामिल,
मगर वो “ला” जो फ़क़त “कर्बला” मविन शामिल है।
दिन रोएगा रात रोएगी,
हर मोमिन की जात रोएगी,
जब भी मोहर्रम का नजर आया करेगा चाँद,
ग़मे हुसैन में सारी कायनात रोएगी।
या रब गमे हुसैन में रोने के बास्ते,
आँखों में आंसुओं का समंदर उतार दें।
इमाम का हौसला इस्लाम जगा गया,
अल्लाह के लिए उसका फ़र्ज़ आवाम को धर्म सिखा गया।
करबला की उस जमीन पर खून बहा,
कत्त्लेआम का मंजर सजा,
दर्द और दुखों से भरा था जहाँ,
लेकिन फौलादी हौसलों को शहीद का नाम मिला।
मगर साहिल पे पहुंचे थोकरें मारी चले आये,
बता दी हजरते अब्बास ने ओकात पानी की।
वो जिस ने अपने नाना का वादा पूरा कर दिया,
घर का घर सुपुर्द-ए-खुदा कर दिया,
नोश कर लिया जिस ने शहादत का जाम,
उस “हुसैन इब्न-ए-अली” पे लाखों सलाम पर।
शाह अस्त हुसैन,
बादशाह अस्त हुसैन दीन अस्त हुसैन,
दीन पनाह अस्त हुसैन।
आँखों के साहिलों पर है अश्कों का इक हजूम,
शायद ग़म-ए-हुसैन का मौसम क़रीब है।
इस्लाम के दामन में बस इस के सिवा क्या है,
एक ज़र्ब-ए यादुल्ला ही एक सजदा-ए शब्बीरी।
हक ओ बातिल की है पैकार हमेंहा जारी,
जो ना बातिल से डरें हैं वही शये आन-ए हुसैन।
क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,
सजदे में जा कर सर कटाया हुसैन ने,
नेजे पे सिर था और जुबां पर अय्यातें,
कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।
कौन भूलेगा वो सजदा हुसैन का,
खंजरों तले भी सर झुका ना था हुसैन का,
मिट गयी नसल ए याजिद करबला की ख़ाक में,
क़यामत तक रहेगा ज़माना हुसैन का।
साल तो पहले भी कई साल बदले,
दुआ है इस साल उम्मत का हाल बदले।
आलम खरीद ले गा जो ऐसा ग़रीब है,
मेरा हुसैन (र.अ.) करबो बला से करीब है।
Best 101+ प्रेरणादायक सच्चाई सुविचार
पानी का तलब हो तो एक काम किया कर,
कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,
दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत,
जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।
बहुत करीब से देखा है मैंने सबरे खलील,
मगर हुसैन तेरे सब्र का कोई जवाब नहीं।
क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,
सजदे में जाकर सर कटाया हुसैन ने।
गुरुर टूट गया कोई मर्तबा ना मिला,
सितम के बाद भी कुछ हासिल जफा न मिला।
जन्नत की आरजू में कहां जा रहे हैं लोग,
जन्नत तो कर्बला में खरीदी हुसैन ने।
करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने,
ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने
कर्बला की कहानी में कतले आम था,
लेकिन हौसलों के आगे हर कोई गुलाम था।
कि जिस पर रहमत हो वह हुसैन होता है,
जो इंसाफ और सत्य के लिए लड़ जाए वह हुसैन होता है।
जिक्र हुसैन आया तो आंखें छलक पड़ी,
पानी को कितना प्यार है अभी हुसैन से।
शहादत सबके हिस्से में कहां आती है दुनिया में,
मैं तुमसे इश्क करता हूँ मातम नहीं करता।
जिंदगी बे चैन है मौला थोरा सा चैन दे,
और कुछ ना दे बा ज़ायरत ए हुसैन दे।
सदके से कर्बला को बंदगी मिल गई,
सब्र से उम्मत को जिंदगी मिल गई,
एक चमन फातिमा का उजड़ा,
मगर सारे इस्लाम को जिंदगी मिल गई।
कर्बला को कर्बला के शहंशाह पे नाज है,
उसे नवासे पर मुहम्मद को नाज है।
क्या हक अदा करेगा ज़माना हुसैन का,
अब तक ज़मीन पर कर्ज़ है सजदा हुसैन का,
झोली फैलाकर मांग लो मुमीनो हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का।
क्या हक अदा करेगा ज़माना हुसैन का,
अब तक ज़मीन पर कर्ज़ है सजदा हुसैन का,
झोली फैलाकर मांग लो मुमीनो हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का।
जब भी कभी ज़मीर का सौदा हो दोस्तों,
कायम रहो हुसैन के इंकार की तरह,
ना पूछ वक़्त की इन बेजुबान किताबों से,
सुनो जब अज़ान तो समझो के हुसैन ज़िंदा है।
फिर आज हक़ के लिए जान फिदा करे कोई,
वफ़ा भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई,
नमाज़ 1400 सालों से इंतज़ार में है,
हुसैन की तरह मुझे अदा करे कोई।
मट्टी में मिल गए इरादे यज़ीद के
लहरा रहा आज भी परचम हुसैन (र.अ.) का।
जिस की मां फातिमा (र.अ.) जिनके नाना,
नबी (स.अ.व.) उन हुसैन (र.अ.) इब्न ए हैदर की क्या बात है।
दोनो जहानो का वाली नाना हुसैन (र.ए.) का,
सादियान हुसैन (R.A) की हैं ज़माना हुसैन (R.A) का।
वो वक़्त जिसका पूरी कायनात को इंतज़ार है,
वो लम्हा जिसके लिए रूह तरस रही है।
छोड़ अगर हुसैन (र.अ.) को जन्नत न पाओगे,
सारे जहां को हुर ने बर्बाद कर दिया।
कर्बला की शहादत इस्लाम बचा गयी,
खून तो वहां था लेकिन हौसलों की उड़ान दिख गई।
न जाने क्यों मेरी आंखों में आ गए आंसू,
सीख रहा था मैं बच्चों को करवाना लिखना।
पानी की तलब हो तो एक काम किया कर,
कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,
दी मुझको यह हुसैन इब्ने अली ने नसीहत,
जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर
खून से चरागे दीन जलाया हुसैन ने,
रश्मे वफ़ा को खूब निभाया है हुसैन ने,
देकर राह दीनकी अपना सर, नाना का बादा निभाया हुसैन ने।
एक दिन बड़े गुरुर से कहने लगी जमीन, है मेरे नसीब में परचम हुसैन का,
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने की चमक देख, होता है आसमान पर चर्चा हुसैन का।
तरस उठता है दिल, दास्ताँ लफ्जों में दोहरी नहीं जाती,
जुबान पर कर्बला की दास्तान लाई नहीं जाती।
सर-ए-हुसैन मिला है यज़ीद को लेकिन,
शिकस्त ये है के फिर भी झुका हुआ ना मिला।
क़ाफ़ला रह गया इक दश्त ए वला में पियासा,
जिन की मीरास थी कौसर उन्हें पानी तक ना मिला।
कल के यज़ीद का मसला,
वजूद ए हुसैन (र.अ.) थे आज क्या यज़ीद का मसला,
ज़िकर ए हुसैन (र.अ.) हैं।
यूं ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का,
खुच देख कर हुआ था जमाना हुसैन का।
तू ने सदकातों का ना सौदा किआ हुसैन,
बातिल के दिल में रह गई हसरत खरीद की।
क्या सिर्फ मुसलमान के प्यारे है हुसैन,
चरख-ए-नोह-ए-बशर के तारे है हुसैन।
आवाज दे रहा है ये मैदाने कर्बला,
कुछ रोज रह गए हैं शिकस्ते यजीद में।
ये दिल भी हुसैनी है, ये जान हुसैनी है,
हम सुन्नी मुस्लमान की पहचान हुसैनी है।
ऐ चाँद करबला के तू ने तो देखे होंगे,
उतरे थे इस ज़मीन पर अर्श ए बरी के तारे।
इंसान को बेदार तो हो लेने दो,
हर क़ौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन।
हिम्मत और जुनून रखना साथ तू बंदगी में,
दास्तां-ए-शहादत को रखना याद तू जिंदगी में।
लड़ी जंग और बताई जमाने को कुर्बानी की अहमियत,
शहादत थी हुसैन की जिसने याद दिलाई इंसानियत।
मैदान-ए-कर्बला में कर दिया यज़ीदियों हौसला कच्चा,
होकर शहीद हुसैन ने बताया कुर्बानी का मतलब सच्चा।
Best 110+ Happy New Year Quotes
हर शख्स की जुबां पर है हुसैन के कुर्बानी की बात,
मांगो दुआएं, आई है जो मोहर्रम की ये पाक रात।
दबदबा हैं ज़माने में मगर लिबास सादा हैं
परचम-ए-हक़ बुलंद करना जिस का इरादा हैं।
रमोज़ ए इश्क़ ओ मोहब्बत तमाम जानता हूँ,
हुसैन इब्न ए अली को इमाम जानता हूं।
अली के लाल ने हलचल मचा के रखी है,
जमीन में कर्बोबला हिला के रखी है।
हुसैन के एक दूध पीते सिपाही ने,
यजीदी कौम की धज्जियाँ उड़ा के रक्खी हैं।
हमने किससे कर्बला के सुने हैं बचपन में,
और यह कुत्ते हमें मौत से डराते हैं।
क्या जल्बा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,
सजदे में जाकर सर को कटाया हुसैन ने,
भेज पर सर था और जुबान पर आयतें,
कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।
अली के लाडले जहरा के लाल देते हैं,
बगैर मांगे ही झोली में डाल देते हैं।
बरांडेड न हो कैसे कंपनी अपनी,
हसन हुसैन मदीने का माल देते हैं।
कर दिया कुरबान सब कुछ हक़ की खातीर,
मेरा हुसैन हक़ गोई में सब से ज़्यादा हैं।
शहादत से हुसैन की ये दुनिया थी अनजानी,
देकर अपनी कुर्बानी, सीखा गए वो जिंदगानी।
अली असगर का प्यास से तड़पना याद करो,
वो मासूम सकीना का ज़रा सिसकना याद करो,
दिखाई हैं हुसैन ने, राह-ए-हक़ ज़माने को,
नाम-ए-हुसैन से बादशाहत का लरज़ना याद करो.
दुशमनों को गले से लगाना सिखाया हुसैन ने,
रास्ता ज़माने को हक़ का बताया हुसैन ने,
कर दिया माफ़ कातीलों को अपने बाप के,
सबक़ इंसानियत का ऐसा पढ़ाया हुसैन ने।
हुसैन की शान में कोई ऐसा कलाम हो जाए,
मेरा शामील उन के गुलामों में नाम हो जाए,
चूमता फिरूँ वादी-ए-करबला के ज़र्रों को,
हुसैन के पहलू में ज़िन्दगी की शाम हो जाए.
करबला में हक़ बंदगी का अदा कर दिया,
सर कटा कर वादा अपना वफ़ा कर दिया,
गुमनामी के अंधेरों में गुम हैं यज़ीद,
आज परचम हक़ का हुसैन ने ऊँचा कर दिया।
हुसैन के लबों को चूमने को तरसती फुरात है हुसैन है अज़ीम,
आला उस की हर बात है जिस की बंदगी पर है,
खुद ख़ुदा को भी नाज़ ज़माने में ऐसी वो एक मेरे हुसैन की ज़ात है।
करबला की वादीयों में कुछ रोज़ क़याम हो,
आँखों में अश्क और लबों पर सलाम हो,
वहाँ खड़े हो कर पढू मैं कभी फ़ातीहा,
हुसैन के कदमों में ये ज़िन्दगी तमाम हो।
रकीबों को अपने सीने से लगाने वाला हुसैन है,
ज़माने को हक़ की राह दिखाने वाला हुसैन है,
सजदे किए है जिस ने अदा तलवारों के साये में,
ज़माने को बंदगी का पाठ पढ़ाने वाला हुसैन है।
हक़ का परचम, वजूद-ए-हुसैन से बुलंद हैं,
बातील के आगे सर झुकाना उसे नापसंद हैं,
खून से अपने सींचा हैं सच्चाई का दरख़्त,
ज़माना आज तक हुसैन का अहसानमंद हैं।
करबला की ख़ाक, आज तलक खून रोती है,
बिन बाबा के बड़ी मुश्किल से सकीना सोती है,
सर कटा तो सकते है मगर झुका नहीं सकते,
वो जिन के लहू में शामील हुसैनीयत होती है।
मुझे क्या फ़िक्र, हुसैन जन्नत का इमाम होगा,
दम-ए-आखिर लबों पर हुसैन का नाम होगा।
शब्बीर सा जहां में कोई नहीं तबीब
मट्टी शिफ़ा बानी है फ़क़त कर्बला के बाद
हुसैन (र.अ.) इक बार जो कह देते के मौला पानी,
कर्बला तेरे सम्भाले न सम्भलता पानी।
वक्त के बादशाह को खातिर में लाते नहीं,
हुसैन के गुलाम हालात से कभी घबराते नहीं,
यज़ीदीयों पर हैं तारी हैबत आज तलक हुसैन की,
ज़ालीम बादशाह भी हुसैनीयों से टकराते नहीं।
कोन कहता है के पानी को तरसे थे हुसैन (र.अ.)
इनके होंटों को तरसता रहा पियासा पानी।
बातिल की साजिशों को कुचलते रहेंगे हम,
जब तक रहेगा हाथ में परचम हुसैन का।
यकीन मोहकम, अमल पेहम, मोहब्बत फ़तेह-ए-आलम,
जहद-ए-जिंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें।
यूँ ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का,
कुछ देख के हुआ था जमाना हुसैन का,
सर दे के जो जहाँ की हुकूमत खरीद ली,
महँगा पड़ा यजीद को सौदा हुसैन का।
बनी दुनिया जिसके लिए.. रहे न वो अब यहाँ,
हुए कुर्बान इस क़दर दे गए मिसाल ईमान की।
हुसैन आप ही से बाग़ ए उल्फ़त में बहार है,
हुसैन आप ही से हर मोमिन के दिल को करार है,
हुसैन आप ही से यज़ीदियत की हार है ,
हुसैन आप की ही ज़माने पर सरकार है।
दुनिया ने देखी शान वो कर्बोबला में ज़ो आख़री सज़दा किया मेरे हुसैन ने,
सजदे में सर, गले पे खंजर और तीन दिन की प्यास,
ऐसी नमाज़ फिर ना हुई कर्बला के बाद।
फलक पर शोक का बादल अजीब आया है,
कि जैसे माह मुहर्रम नजदीक आया है।
दिल थाम के सोचा लिखूं शान-ए-हुसैन में,
कलम चीख उठी कहा बस अब रोने दो।
मिटकर भी मिट सके ना ऐसा वो हामी-ओ-यावर,
नेज़े की नोंक पर था फिर भी बुलंद था सर।
लफ़्जों में क्या लिखूं मैं शहादत हुसैन की,
कलम भी रो देता है कर्बला का मंजर सोचकर।
खुशियों का सफ़र तो गम से शुरू होता है,
हमारा तो नया साल मुहर्रम से शुरू होता है।
कर्बला की शहादत इस्लाम बना गयी,
खून तो बहा था लेकिन कुर्बानी हौसलों की उड़ान दिखा गयी।
साल तो पहले भी कई साल बदले,
दुआ है इस साल उम्मत का हाल बदले।
Top 100+ Happy New Year Wishes
निष्कर्ष
दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम आपके लिए मोहर्रम शायरी लेकर आए उम्मीद करते हैं आपको यह शायरी पसंद आई होगी इसी तरह की अन्य शायरी हम अपनी इस वेबसाइट पर लेकर आते रहते हैं जो आपको काफी पसंद आएंगी। यदि आपको मोहर्रम से ही पसंद आई है तो आप इससे ज्यादा से ज्यादा लोग हमें शेयर करें इसी तरह की अन्य शायरी पाने के लिए हमारी वेबसाइट “Suvicharin.com” से जुड़े रहीए। Muharram Shayari मोहर्रम के महीने में पढ़ी जाने वाली शायरी होती हैं जो हमें इमामे हुसैन की याद दिला दी हैं और कर्बला का मंजर याद दिलाती हैं।