101+ Faiz Ahmad Faiz Shayari | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी (2024)

Faiz Ahmad Faiz Shayari
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दोस्तों शायरी की दुनिया में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी (Faiz Ahmad Faiz Shayari) बहुत ही प्रसिद्ध मानी जाती हैं यदि आप फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी को पसंद करते हैं तो आप बिल्कुल सही वेबसाइट पर आए हैं क्योंकि आज हम इस पोस्ट में आपको फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की बेहतरीन बेहतरीन और नई-नई शायरी लेकर आए हैं जिन्हें पढ़कर आपका दिल खुश हो जाएगा।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी (Faiz Ahmad Faiz Shayari) अपनी एक अलग पहचान रखती हैं लोग फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी (Faiz Ahmad Faiz Shayari) सुनने के लिए लोग बेताब हो जाते हैं। यदि आप फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी को सुनना और पढ़ना चाहते हैं तो आप हमारी इस पोस्ट के साथ बने रहिए। आईए शुरू करते हैं फैजाबाद फैज की शायरी।

हम एक उम्र से वाकिफ हैं,

अब ना समझाओ कि लुत्फ क्या है,

मेरे मेहरबान सितम क्या है।

ना दीद है न सुखन, अब न हरफ है न पयाम,

कोई भी हिलाए तस्कीन नहीं और आस बहुत है।

कुर्ब के ब वफ़ा के होते हैं,

झगड़े सारे अना के होते हैं।

गम जहाँ हो, रूखे यार हो, के दस्ते अदू,

सलूक जस से क्या हम ने आशका न किया।

सवा ने फिर दर्जिंदा पे आके दी दस्तक,

शहर क़रीब है, दिल से कहो न घबराए।

कब ठहरेगा दर्दे दिल, कब रात बसर होगी,

सुनते थे वो आएँगे, सुनते थे सहर होगी।

जो रुके तो कोहे ग्राह थे हम,

जो चले तो जाँ से गुजर गए,

राहे यार हमने तुझे कदम कदम तुझे याद गार बना दिया।

कर्जे निगाहे यार अदा कर चुके हैं हम,

सब कुछ निसारे राहे वफ़ा कर चुके हैं हम।

उम्मीदे यार, नजर का मजाज, दर्द का रंग,

तुम आज कुछ भी न पूछो के दिल उदास बहुत है।

वो तो वो है, तुम्हे हो जाएगी उल्फत मुझ से,

इक नजर तुम मेरा महबूबे नजर तो देखो।

Faiz Ahmad Faiz Shayari in Hindi
Faiz Ahmad Faiz Shayari in Hindi

दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के,

वो जा रहा है कोई शब-ए-गम गुज़ार के।

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे,

अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे।

कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब,

आज तुम याद बे-हिसाब आए।

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।

हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,

इक बाग़ नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेगे।

तूने देखी है वो पेशानी वो रुख़्सार वो होंठ,

ज़िंदगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने।

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी,

सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी।

उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है,

जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे।

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात,

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है।

बहती हुई है वो में रुका हुआ हूं,

मुकमल सी वो, टूट हुआ में।

मेरा ज़िक्र बंद करो मैं कोई आयत नहीं हु,

दुनिया फरेबी मैं खुद वफ़ा के लायक नहीं हु

वो झूठे वादे करते है, मगर मिलने नहीं आते,

हम भी कमबख्त इश्क से बाज नहीं आते।

निगाहे शौक सरे बज्म बे हजाब न हो,

वो बेखबर ही सही, इतने बेखबर भी नहीं।

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सवात,

तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है।

Faiz Ahmad Faiz #Shayari
Faiz Ahmad Faiz #Shayari

कफ़स उदास है यारो, सवा से कुछ तो कहो,

कहीं तो बहरे खुदा, आज जिक्रे यार चले।

तूने देखी है वो पेशानी, वो रुखसार वो होंट,

जिंदगी जिन के तस्बर में लुटा दी हम ने।

उठ के तो आ गए हैं तेरी वजह से मगर,

कुछ दिल ही जानता है कि कि दिल से आए हैं।

शाम ए फ्राक, अब न पूछ, कोई और आके टल गयी,

दिल था के फिर बहल गया, जाँ थी के फिर संबल गयी।

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आए तो यूं के जैसे हमेशा थे महरवा,

भूले तो यूं के गोया के आशना न थे।

वह बात सारे फसाने में जिसका जिक्र न था,

वह बात उनको बहुत नागबार गुजरी है।

के रहा था गम जहाँ का,

आज तुम याद बे हिसाब आए।

दिल न उम्मीद तो नहीं, न काम ही तो है,

लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।

एक तरजे तगाफिल है सो वो उनको मुबारक,

एक अर्जे तमन्ना है सो हम करते रहेंगे।

Faiz Ahmad Faiz Poems in Hindi
Faiz Ahmad Faiz Poems in Hindi

गम में जहां हो, रूखे यार हो, के दस्ते अदू,

सुलूक जिससे किया हमने आशिका न किया।

वह आ रहे हैं आते हैं आ रहे होंगे,

सब फुराक ये कह के गुजार दी हम ने।

डरता हूं कहने से के मोहब्बत है तुमसे,

मेरी जिंदगी बदल देगा, तेरा इकरार भी इनकार भी।

तुझको देखा तो शेर चश्म हुए,

तुझको चाहा तो और चाह ना की,

तेरे दस्ते सितम का आज नहीं अज्ज नहीं,

दिल ही काफिर था जिसने आह ना की।

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यह अहद तरके मोहब्बत है किस लिए आखिर,

सुकूने कल्ब इधर भी नहीं उधर भी नहीं,

हिम्मत पर इंतजार नहीं बाकी,

जब्त का हौसला नहीं बाकी,

एक तेरी दीद छिन गई मुझसे।

वरना दुनिया में क्या नहीं बाकी।

जब्त का अहद भी है शोक का पैमान भी है,

अह्दो पैमा से गुजर जाने को जी चाहता है,

दर्द इतना है के हर रग में महशर बरपा,

और सकूं ऐसा के पर जाने को जी चाहता है।

राजे उल्फत छपा के देख लिया,

दिल बहुत कुछ जला के देख लिया।

और भी दुःख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा,

राहते और भी है वसल की रहत के सिवा।

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सवात,

तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है।

सुबह फूटी तो आसमान पर तेरे रंग रुखसार की फुहार गिरी,

रात छाई तो रुए आलम पर तेरी जुल्फों की आसार गिरी।

Faiz Ahmad Faiz ki Shayari,
Faiz Ahmad Faiz ki Shayari,

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात,

तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है?

मैने समझा था कि तू है तो दरख़्शां है हयात,

तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है?

हुस्न से दिल लगा के हस्ती की,

हर घड़ी हमने आतशीं की है।

तेरी सूरत जो दिलनशीं की है।

आशना शक्ल हर हसीं की है।

राज़-ए-उल्फ़त छुपा के देख लिया,

दिल बहुत कुछ जला के देख लिया।

फ़ैज़’ थी राह सर-ब-सर मंज़िल,

हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए।

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया,

तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के।

तुम्हारी याद के जब ज़ख्म भरने लगते हैं,

किसी बहाने तुम्हे याद करने लगते हैं।

आप की याद आती रही रात भर,

चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर।

दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के,

वो जा रहा है कोई शब-ए-गम गुज़ार के।

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा,

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।

आप की याद आती रही,

रात भर चाँदनी दिल दुखाती रही।

रात भर कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब,

आज तुम याद बे-हिसाब आए।

गुजरे जमाने से इसी तरहा मुलाकात कराते रहिये,

दिन जो ढल जाये तो एक दीप जलते रहिये।

दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है लंबी है,

गम की शाम, मगर शाम ही तो है।

Best 101+ Happy Teddy Day Shayari

निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन,

कि जहां चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले।

कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं,

सर भी बहुत चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे।

आदमियों से भरी है यह सारी दुनिया मगर,

आदमी को आदमी होता नहीं दस्तयाब।

गर बाजी इश्क की बाजी है, तो जो भी लगा दो,

डर कैसा, जीत गए तो बात ही क्या, हारे भी तो हार नहीं।

Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi

फिर नजर में फूल महके दिल में, फिर शम्में जलीं,

फिर ‘तसव्वुर’ ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम।

तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है,

न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है।

ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर “हमदम”,

विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं।

मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे,

दर्द जब “जाँ-नवाज़” हो जाए

तुमने देखी है वो पेशानी वो रूखसार,

वो होंठ जिन्दगी जिनके तसव्वर में लुंटा दी मैंने।

मक़ाम फ़ैज़ कोई राह में जचा ही नहीं,

जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले।

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था,

वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है।

आये तो यूँ कि जैसे हमेशा थे,

मेहरबाँ भूले तो यूँ कि जैसे कभी आश्ना न थे।

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे,

कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक ‘याद’ न आओगे।

कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे,

कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक ‘याद’ न आओगे।

शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई,

दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई।

आप की #याद आती रही रात भर,

चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर।

Best 101+ Munawar Faruqui Shayari

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे,

अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे।

क़फस उदास है यारों सबा से कुछ तो कहो,

कहीं तो बहरे-खुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले।

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले,

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो,

कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही,

तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़मगुसार चले।

जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ,

हमारे अश्क तेरी आक़िबत सँवार चले।

मक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जचा ही नहीं,

जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले।

Faiz Ahmad Faiz
Faiz Ahmad Faiz

गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले,

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।

क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो,

कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

कभी तो सुब्ह तेरे कुंज-ए-लब से हो,

आग़ाज़ कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्कबार चले।

बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही,

तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़मगुसार चले

दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के,

वो जा रहा है कोई शब-ए-गम गुज़ार के।

आए तो यूँ की जैसे हमेशा थे मेहरबान,

भूले तो यूँ की गोया कभी आशना न थे।

जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ,

हमारे अश्क तेरी आक़िबत सँवार चले

नही निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही,

नही विसल मयस्सर तो आरज़ू ही सही।

मेरी क़िस्मत से खेलने वाले,

मुझ को क़िस्मत से बे-ख़बर कर दे।

हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब,

गिरह में लेके गरेबाँ का तार-तार चले।

फैज़ अहमद फैज़ शायरी इन हिंदी
फैज़ अहमद फैज़ शायरी इन हिंदी

हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है,

जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं।

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निष्कर्ष

आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz Shayari) की शायरी लेकर आए उम्मीद करता हूं आपको फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी पसंद आई होगी। यदि आपको फैजाबाद फैज की यह शायरी पसंद आई है तो इन्हें अपने सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें। इसी तरह की अन्य शायरियां पढ़ने के लिए जुड़े रहिए “Suvicharin.com” वेबसाइट के साथ तब तक के लिए धन्यवाद।

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