90+ मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी | Mirza Ghalib Shayari (2024)

मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी
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दोस्तों आज के आर्टिकल में हमने आपको 90+ मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी बताई है। दोस्तों जैसा कि आप जानते ही हैं मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी पूरे हिंदुस्तान में बल्कि पूरे विश्व में प्रचलित हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब को आज के समय में लगभग सभी लोग जानते हैं। और मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी को लगभग सभी लोग पसंद करते हैं और उनकी शायरी को पढ़ना चाहते हैं। अगर आप भी मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी पढ़ना चाहते हैं तो आप आज बिल्कुल सही जगह पर पहुंचे हैं।

आज के इस आर्टिकल में हमने आपको 90 से भी ज्यादा मिर्जा गालिब की दर्द भरी शायरी लिखी है। जिनको अगर आप पढ़ते हैं तो आपके अंदर से ही काफी ज्यादा सुकून मिलने वाला है। क्योंकि मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी को पढ़कर ज्यादातर लोगों का यही मानना है कि उनको सुकून मिलता है। और मिर्ज़ा ग़ालिब एक बहुत ही बड़े शायर हैं जिनको आज लगभग पूरी दुनिया के लोग ही जानते हैं। तो आईये मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी कोई पढ़ना शुरू करते हैं।

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अच्छा हुआ जो तुमने हमें तोड़ कर रख दिया,

घमंड था मुझे बहुत कि तुम सिर्फ मेरे हो।

भूल गए हैं कुछ लोग हमें इस तरह,

यकीन मानो यकीन ही नहीं आता।

लगता है सब कुछ ठीक हो जाएगा,

सुनते-सुनते जिंदगी ही गुजर जाएगी।

किसी को ठोकर भी सिर्फ उसी को चाहते रहना,

हर किसी के बस की बात नहीं होती।

बस इंतजार है मुझे मेरे वक्त का,

हिसाब होगा हर एक जख्म का।

तुम बदल गए,

हम संभल गए।

हमने बुरा वक्त देखा है साहब,

हम किसी का बुरा नहीं करते।

तुम्हारी सादगी ही कत्ल करती है मेरा,

क्या होगा जब तुम संवर कर आओगी।

अंदर तक तोड़ देते हैं,

वह आंसू जो रात के अंधेरे में चुपचाप निकलते हैं।

मांफ बार-बार करो,

मगर भरोसा सिर्फ एक बार।

गुनाह करके कहां जाओगे ग़ालिब,

यह जमीन यह आसमान सब उसी का है।

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इन हाथों की लकीरों पर मत जा ग़ालिब,

नसीब बनकर भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।

आता है कौन-कौन तेरे गम को बांटने ग़ालिब,

तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा कर देख।

कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,

पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।

जब लगा था तीर तब इतना दर्द ना हुआ ग़ालिब,

जख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथों में।

हजारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पर दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।

उम्र भर वाले ग़ालिब यही भूल करता रहा,

धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा।

बुरे वक्त जरा अदब से पेश आ,

क्योंकि वक्त नहीं लगता वक्त बदलने में।

उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,

वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

कुछ रिश्तो को मजबूत करते-करते,

इंसान खुद ही कमजोर हो जाता है।

माना कि नहीं आता मुझे किसी का दिल जीतना,

मगर यह तो बताओ कि यहां दिल है किसके पास।

उनकी दुनिया में हम जैसे हजारों हैं,

हम ही पागल हैं जो उसे पाकर मगरूर हो गए।

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वह सुन रहे थे अपनी वफाओं के किस्से,

हम पर नजर पड़ी तो खामोश हो गए।

उसने छोड़ा तब जाकर मुझे यकीन आया,

कोई भी शख्स जरूरी नहीं किसी के लिए।

जो मांगू दे दिया कर ऐ जिंदगी,

कभी तो मेरे पापा जैसी बन कर दिखा।

सुना है कि तुम रातों को देर तक जागते हो,

यादों के मारे हो या मोहब्बत में हारे हो।

कुर्बान हो जाऊं उस शख्स के हाथों की लकीरों पर,

जिसने तुझे मांगा भी नहीं और तुझे अपना बना लिया।

डूबी है मेरी उंगलियां खुद अपने लहू में,

यह कांच के टुकड़ों को उठाने की सजा है।

पता नहीं कितना प्यार हो गया है तुमसे,

नाराज होने पर भी तुम्हारी बहुत याद आती है।

कोई मिला नहीं तुम जैसा आज तक,

पर यह सितम अलग है कि मिले तुम भी नहीं।

दिल क्या चीज है हम रूह भी उतर जाएं,

तुमने कभी चाहा ही नहीं चाहने वालों की तरह।

मुझे किसी के बदले जाने का गम नहीं,

बस कोई था जिस पर खुद से ज्यादा भरोसा था।

जरा सी बात पर भिगो देते हो पलके,

तुम्हें तो अपने दिल का हाल बताना भी मुश्किल है।

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उसी से पूछ लो उसके इश्क की कीमत,

हम तो बस भरोसे पर बिक गए।

दिल की उम्मीदों का हौसला तो देखो,

इंतजार उसका जिनको एहसास तक नहीं।

तूने फैसला ही फासले बढ़ाने वाले किए थे,

वरना कोई नहीं था तुमसे ज्यादा करीब मेरे।

जिसके लिए तोड़ दी मैंने सारी सरहदें,

आज उसी ने कह दिया जरा हद में रहा करो।

करेगा जमाना भी कदर हमारी एक दिन,

बस हमारी यह वफा करने की लत मिट जाए।

तुम्हारे लिए मिट जाने का इरादा था,

तुम खुद ही मिटा दोगे सोचा ना था।

हम दोनों ही धोखा खा गए,

हमने तुम्हें औरों से अलग समझा और तुमने हमें औरों जैसा ही समझा।

इससे अच्छा हम चांद से मोहब्बत कर लेते,

लाख दूर सही लेकिन दिखाई तो देता है।

धड़कनों को भी रास्ता दे दीजिए हुजूर,

आप तो पूरे दिल पर कब्जा किए बैठे हैं।

उसके चले जाने के बाद हम मोहब्बत नहीं करते किसी से,

छोटी सी जिंदगी है किस-किस को आजमाते रहेंगे।

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,

दिल की तसल्ली को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है।

इस सादगी पर कौन ना मर जाए ए खुदा,

लड़ते हैं वह और हाथ में तलवार भी नहीं।

चांदनी रात के खामोश सितारों की कसम,

दिल में तेरे सिवा कोई भी आवाद नहीं।

खैरात में मिली खुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,

मैं अपने दुखों में रहता हूं नवाबों की तरह।

मेरे बारे में कोई राय ना बनाना,

मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी।

पलट कर देखा ना करो इस तरह जाने वालों को,

जो दिल तोड़ जाते हैं वह वापस नहीं आते।

फरिश्ते ही होंगे जिनका इश्क मुकम्मल हुआ,

इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है।

उसे पाना उसी को खोना उसी के लिए रोना,

अगर यही इश्क है तो हम तनहा ही अच्छे हैं।

गलतफहमियों के किससे इस कदर दिलचस्प हैं,

हर ईंट सोचती है कि दीवार मुझ पर टिकी है।

जिसका यह ऐलान है कि वह मजे में है,

या तो वह फकीर है या फिर नशे में है।

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रोज जले फिर भी खाक ना हुए,

अजीब है यह इश्क भी साहब बुझकर भी राख न हुए।

तेरी कामयाबी पर तारीफ तेरी हर कोशिश पर ताना होगा,

तेरे दुख में कुछ लोग होंगे तेरे सुख में सारा जमाना होगा।

मोहब्बत के बाजार में हुस्न की जरूरत नहीं,

दिल जिस पर आ जाए वह सबसे हसीन लगता है।

हुए बदनाम मगर फिर भी ना सुधर पाए हम,

फिर वही शायरी फिर वही इश्क फिर वही तुम।

कांच की तरह होते हैं हम जैसे तनहा लोग,

कभी टूट जाते हैं कभी तोड़ दिए जाते हैं।

मोहब्बत सिखाकर जुदा हो गया ना सोचा ना समझा बस खफा हो गया,

दुनिया में साहब हम किसे अपना कहें जो अपना था वही बेवफा हो गया।

जवान कड़वी ही सही मगर दिल साफ रखता हूं,

कौन कहां कब बदल गया सब हिसाब रखता हूं।

बड़ी अजीब है ये बंदिशें मोहब्बत की,

ना उसने कैद में रखा ना हम फरार हुए।

जब रहना ही है तनहा तो रोना कैसा,

जो कभी अपना था ही नहीं फिर उसे खोना कैसा।

निगाहों की बातें निगाहों से कर लिया करो,

मोहब्बत को नजर लगते देर नहीं लगती।

कौन कहता है मुझसे वफ़ा कीजिए,

आईये दिल लगाइए और तबाह कीजिए।

इस छोटी सी जिंदगी में रखा क्या है,

इश्क अगर बुरा है तो अच्छा क्या है।

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तरस गया हूं खुद को देखने के लिए,

आईना भी देखूं तो तुम नजर आती हो।

मत पूछो साहब शीशे से टूट जाने की वजह,

उसने भी किसी पत्थर को अपना समझा होगा।

मिट जायेगा गुनाहों का तसव्वर इस जहां से,

अगर हो जाए यकीन के खुदा देख रहा है।

जब जान प्यारी थी तो दुश्मन हज़ारों थे,

अब मरने का शौक है तो कोई कातिल नहीं मिलता।

उसकी तहजीब थी कि वह झुक के मिला मुझसे,

वरना वह शख्स कद में बहुत बड़ा था मुझे।

मेरी तो फितरत में ही था माफ करना,

पर वह गलती करते-करते गुनाह कर गए।

मोहब्बत में मर्जिया नहीं चलती साहब,

गर्दन झुका ली जाती है हुकुम-ए यार पर।

बड़ी अजीब सी है इन शहरों की रोशनी साहब,

उजालों के बावजूद भी चेहरे पहचाने नहीं जाते।

जब कभी भी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको,

याद बहुत आया एक पेड़ का साया मुझको।

अपने उसूल कभी यूं भी तोड़ने पड़े,

खता किसी और की थी हाथ माझे जोड़ने पड़े।

फराज ए इश्क तेरी तन्हा नहीं हुए हम,

किसी पर कर्ज थे लेकिन अदा नहीं हुए हम।

तुम्हारे बाद बड़ा फर्क आ गया हममें,

तुम्हारे बाद किसी से खफा नहीं हुए हम।

सीख रहा हूं मैं भी इंसानों को पढ़ने का हुनर,

सुना है चेहरों पर किताबों से ज्यादा लिखा होता है।

न जाने कब खर्च हो गए पता ही ना चला,

वह लम्हे जो छुपा कर रखे थे जीने के लिए।

हर कदम पर नाकामी हर कदम पर महरुमी,

यकीनन कोई दोस्त मेरा दुश्मनों में शामिल है।

ना रूठना का डर ना मनाने की कोशिश,

दिल से उतरे हुए लोगों से शिकायत कैसी।

किसी के पास बहुत कुछ है खुदा का दिया हुआ,

और किसी के पास खुद के सिवाय कुछ भी नहीं।

जानता हूं मैं एक शख्स को भी साहब,

कि गम से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं।

समझ पाता हूं देर से मैं दांव-पेंच उसके,

वह बाज़ी जीत जाता है मेरे चालक होने तक।

चेहरा हमेशा मुस्कुराता हुआ मिलेगा मेरा,

हाल अगर पूछना हो तो अकेले में जाकर पूछना।

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बजूद ख़ाक है मुफलिस दोस्तों के जमाने में,

जब के वजन से यहां किरदार पहचाने जाते हैं।

सीखते रहे उम्र भर लहरों से लड़ने का हुनर,

हमें कहां पता था कि किनारे भी कातिल निकलेंगे।

जिस दिन से चला हूं मेरी मंजिल पर नजर है,

इन आंखों ने फिर कभी मिल का पत्थर नहीं देखा।

फिर एक दिन खरीद लेगी यह कब्र की मिट्टी मुझे,

मेरा यकीन करो अपनी उम्र से कहीं ज्यादा उदास हूं मैं।

बस यही बात कभी समझ नहीं आई मुर्शद,

कि बेवफा जितनी भी हुए हसीन क्यों हुए।

होठों की हंसी को ना समझ ए हकीकत जिंदगी,

दिल में उतर कर देख कितना टूटे हुए हैं हम।

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निष्कर्ष

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने आपको मिर्ज़ा ग़ालिब की 90 से भी ज्यादा दर्द भरी शायरी बताई है जो कि बहुत ही फेमस शायरी हैं और हिंदुस्तान के ज्यादातर लोग इन शायरियों को पसंद करते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की सभी शायरी बहुत ही दर्द भरी और नरम लहजे वाली होती हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी में बहुत ही ज्यादा दर्द छुपा होता है। जिनको पढ़कर हम सभी लोगों को काफी ज्यादा सुकून महसूस होता है। इस आर्टिकल को आप अपने दोस्तों में भी शेयर करें ताकि वह भी मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी को पढ़ सकें।

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