60+ संस्कृत सुविचार अर्थ सहित Sanskrit Suvichar with Meaning in Hindi
हेल्लो दोस्तों स्वागत है आपका हमारी सुविचार इन वेबसाइट पर जहा हम आपके लिए रोजाना नए नए सुविचार आर्टिकल लेकर आते रहते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम संस्कृत के सुविचार अर्थ सहित हिंदी में बताने वाले हैं। अगर आप भी सुविचार अर्थ सहित जनना चाहते हैं तो आप बिक्लुल सही आर्टिकल पढ़ रहे हैं।
संस्कृत भाषा को भारत की सभी भाषाओं की मातृभाषा माना जाता है यह दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है और संस्कृत की सबसे बड़ी रचनाएँ इसके छंद हैं। अगर आप भारतीय हैं और हिंदू धर्म से संबंध रखते हैं तो आपको संस्कृत श्लोकों के बारे में पता होना चाहिए। प्राचीन काल से ही संस्कृत मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। संस्कृत श्लोकों में अद्भुत खंड लिखे गए हैं।
अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च..!
अर्थ: मनुष्य को आठ सद्गुण शोभा देते हैं – बुद्धि, सच्चरित्र, आत्मसंयम, शास्त्रों का अध्ययन, वीरता, कम बोलना, क्षमता के अनुसार दान देना और कृतज्ञता।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति..!
अर्थ: रथ कभी भी एक पहिये पर नहीं चल सकता, इसलिए बिना पुरुषार्थ वाले व्यक्ति का भाग्य उत्तम नहीं होता
ज्यांना खाली पडण्याची भीती असते ते
आकाशात कधीच उंच भरारी घेऊ शकत नाहीत..!
अर्थ: जो लोग अपने जीवन में हार से डरते हैं वे अपने जीवन में कभी जीत नहीं सकते, कभी सफल नहीं हो सकते ।
बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जन..!
अर्थ: जो व्यक्ति परिश्रमी नहीं है और अपने धर्म का पालन नहीं करता है वह शक्तिशाली होने पर भी निर्बल है, धनवान होने पर भी दरिद्र है और पढ़ा-लिखा होने पर भी अज्ञानी है।
आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते
नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो..!
अर्थ: सभी अनमोल रत्नों में सबसे अनमोल है जीवन जिसे एक क्षण के लिए भी पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे फालतू कामों में खर्च करना एक बड़ी गलती है।
चन्दनं शीतलं लोके ,चन्दनादपि चन्द्रमाः
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगति..!
अर्थ: चंदन को दुनिया का सबसे ठंडा मलहम माना जाता है लेकिन कहा जाता है कि चंद्रमा उससे भी ज्यादा ठंडक देता है लेकिन इन सबके अलावा अच्छे दोस्तों की संगति सबसे ज्यादा ठंडक और शांति देती है
आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्..!
अर्थ: दुष्टों की मित्रता प्रारंभ में बहुत अच्छी होती है और धीरे-धीरे कम होती जाती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ती है। इस प्रकार दुष्टों और धर्मियों की मित्रता एक छाया की तरह है जो दिन के शुरुआती और देर के हिस्सों में अलग-अलग दिखाई देती है।
परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्
परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत..!
अर्थ: मनुष्य को कभी पराया भोजन, पराया धन, दान, पराई स्त्री तथा पराई निन्दा की इच्छा नहीं करनी चाहिए
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्..!
अर्थ: तेरा मेरा करने वाले लोगो की सोच उन्हें बहुत कम देती हैं उन्हें छोटा बना देती हैं जबकि जो व्यक्ति सभी का हित सोचते हैं उदार चरित्र के हैं पूरा संसार ही उसका परिवार होता हैं।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा..!
अर्थ: बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता, सिर्फ सोचने से काम नहीं बनते, मेहनत करनी पड़ती है। कभी भी सोया हुआ शेर हिरण के मुंह में आ जाता है तो उसे शिकार करना ही पड़ता है
न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति
अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्..!
अर्थ: कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता इसलिए जो करना है आज ही कर लो यही बुद्धिमान व्यक्ति की निशानी है।
आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम्
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने..!
अर्थ: जब विपत्तियाँ आनी होती हैं तो दाता ही उनमें कारण भी बन जाता है। बछड़े को बाँधने में माँ की जाँघ ध्रुव होती है।
Anmol Vachan Suvichar in Hindi
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्..!
अर्थ: मनुष्य के लिए उसकी माँ सभी पवित्र स्थानों की तरह पूजनीय है और उसका पिता सभी देवताओं की तरह पूजनीय है। अत: उनका आदर करना और उनकी अच्छी सेवा करना उसका परम कर्तव्य है।
विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च..!
अर्थ: यात्रा में ज्ञान मित्र की भाँति साथ देता है, घर में पत्नी मित्र की भाँति साथ देती है, बीमारी में औषधि साथ देती है, अन्त में धर्म ही सबसे बड़ा मित्र है।
अन्यायोपार्जितं वित्तं दस वर्षाणि तिष्ठति
प्राप्ते चैकादशेवर्षे समूलं तद् विनश्यति..!
अर्थ: गलत तरीके से और अन्याय करके कमाया हुआ धन 10 वर्षों तक ही संचित किया हुआ रह सकता है। लेकिन वह धन अपने मूलधन सहित पूरा ग्यारहवें वर्ष नष्ट हो जाता है।
तुलसी श्रीसखि शिवे शुभे पापहारिणी पुण्य दे
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते..!
अर्थ: हे तुलसी! आप लक्ष्मी की सखी, कल्याण दाता, पापों का नाश करने वाली और पुण्य देने वाली हैं। भगवान नारायण के मन को प्रिय लगने वाले आपको मैं नमस्कार करता हूँ। दीपक की रोशनी मेरे पापों को दूर कर दे, दीपक की रोशनी
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति..!
अर्थ: मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसके अंदर वास करने वाला आलस्य है। इंसान का सबसे बड़ा दोस्त उसकी मेहनत है जो हमेशा उसके साथ रहती है इसलिए वह दुखी नहीं रहता
तावत्प्रीति भवेत् लोके यावद् दानं प्रदीयते
वत्स: क्षीरक्षयं दृष्ट्वा परित्यजति मातरम्..!
अर्थ: लोग तब तक प्यार करते हैं जब तक उन्हें कुछ मिलता है। माँ का दूध सूख जाने पर बछड़ा भी उसका साथ छोड़ देता है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा..!
अर्थ: उद्यम अर्थात कार्य केवल इच्छा से नहीं बल्कि परिश्रम से सिद्ध होता है। जैसे सोते हुए शेर के मुँह में हिरण अकेले नहीं घुसता बल्कि शेर को खुद ही इसकी कोशिश करनी पड़ती है।
तदा एव सफलता विषये चिन्तनं कुर्म
यदा वयं सिद्धाः भवाम..!
अर्थ: सफलता के बारे में तभी सोचें जब आप उसे मेहनत करके हासिल कर सकें, अन्यथा बिना मेहनत किए ही सफलता मिलेगी इसके बारे में सोचना बेकार है।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति..!
अर्थ: इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य है इंसान की मेहनत ही उसका सच्चा दोस्त है। क्योंकि जब भी कोई इंसान मेहनत करता है तो वह दुखी नहीं रहता और हमेशा खुश रहता है।
आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते..!
अर्थ: हे आदि सूर्य! (सूर्य का एक नाम भास्कर भी है) मैं आपको नमस्कार करता हूं, हे सूर्य आप मुझ पर प्रसन्न हों! हे प्रभाकर तुम्हें नमस्कार है! में तुम्हें सलाम करता हुँ।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति..!
अर्थ: जिस प्रकार रथ कभी भी एक पहिये पर नहीं चल सकता, उसी प्रकार पुरुषत्व के बिना मनुष्य का भाग्य सफल नहीं होता।
सुसूक्ष्मेणापि रंध्रेण प्रविश्याभ्यंतरं रिपु:
नाशयेत् च शनै: पश्चात् प्लवं सलिलपूरवत्..!
अर्थ: नाव में पतले-पतले छिद्रों से पानी आने लगता है और नाव में भरकर उसे डुबा देता है, उसी प्रकार जैसे यदि शत्रु को कोई छोटा रास्ता या दरार मिल जाए तो वह नाव में आ जाता है और उसे डुबा देता है।
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्वृ
णते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः..!
अर्थ: कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए क्योंकि बिना सोचे-समझे किया गया कार्य घर में विपत्तियों को निमंत्रण देता है। जो लोग अपना काम सहजता और सोच-समझकर करते हैं, उन्हें लक्ष्मी स्वयं चुनती हैं
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया
लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं..!
अर्थ: जिस मनुष्य की वाणी मधुर होती है, जिसका कार्य परिश्रमपूर्ण होता है, जिसका धन परोपकार में खर्च होता है, उसका जीवन सफल होता है।
निवर्तयत्यन्यजनं प्ररमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते गुणाति तत्त्वं
हितमिछुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु निर्गघते..!
अर्थ: जो दूसरों को प्रमाद (नशा, गलत काम) से रोकते हैं स्वयं पापरहित मार्ग पर चलते हैं और कल्याण चाहने वालों को तत्त्वबोध (सच्चे ज्ञान की प्राप्ति) देते हैं, वे गुरु कहलाते हैं।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा..!
अर्थ: इंसान का काम सिर्फ चाहने से नहीं बल्कि मेहनत करने से पूरा होता है। जैसे सोते हुए शेर के मुँह में हिरण खुद नहीं आता, शेर को इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते..!
अर्थ: मैं उस दीपक के प्रकाश को बार-बार नमन करता हूं जो सौभाग्य, स्वास्थ्य और समृद्धि लाता है, जो अनैतिक भावनाओं का नाश करता है।
Good Morning Suvichar in Hindi
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्..!
अर्थ: जो लोग तेरा-मेरा करते हैं उनकी सोच उन्हें बहुत कम देती है और छोटा बना देती है जबकि जो व्यक्ति सबके हित के बारे में सोचता है वह उदार चरित्र का होता है और पूरा विश्व उसका परिवार होता है।
महाजनस्य संपर्क: कस्य न उन्नतिकारक:
मद्मपत्रस्थितं तोयं धत्ते मुक्ताफलश्रियम्..!
अर्थ: महाजन, गुरुओं के संपर्क से कौन आगे नहीं बढ़ता? कमल के पत्ते पर पानी की बूंद मोती की तरह चमकती है।
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता..!
अर्थ: मधुर वचन बोलने से सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं, इसलिए मधुर वचन ही बोलने चाहिए। ऐसे शब्द बोलने में कैसी कंजूसी.
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा..!
अर्थ: जिसका एक दांत टूटा हुआ है जिसका शरीर हाथी के समान विशाल और सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी है। मेरी उनसे प्रार्थना है कि मेरे कार्यों के बीच आने वाली बाधाओं को सदैव दूर करें
काक चेष्टा, बको ध्यानं स्वान निद्रा तथैव च
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणं..!
अर्थ: प्रत्येक छात्र में हमेशा पांच विशेषताएं होती हैं जैसे कौवे की तरह कुछ नया सीखने की कोशिश करना, बगुले की तरह एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करना, चोट लगने पर कुत्ते की तरह सोना, बेघर होना और यहां स्नैक का मतलब है अपनी जरूरत के अनुसार खाना।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्धर्मो यशो बलम्..!
अर्थ: जो सदैव नम्र, विनम्र, विद्वान और वृद्धों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, कर्म और बल में वृद्धि होती है।
पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं च धनम्
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम्..!
अर्थ: किताबों में छपा ज्ञान और दूसरों को दिया हुआ धन कभी मुसीबत में काम नहीं आता।
निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा
विषं भवतु मा वास्तु फटाटोपो भयंकरः..!
अर्थ: अगर सांप जहरीला नहीं है लेकिन वह सीटी बजाता है और अपनी पूंछ ऊंची करता है तो लोग इतना डर जाते हैं कि भाग जाते हैं। अगर वह ऐसा भी नहीं करेगा तो लोग उसकी रीढ़ की हड्डी को जूतों से कुचल कर तोड़ देंगे
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:
यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते..!
अर्थ: बड़े वृक्ष की सेवा करनी चाहिए क्योंकि उसमें फल और छाया दोनों होते हैं। यदि दुर्भाग्यवश फल ही न हों तो छाया को कौन रोक सकता है।
वक्रतुण्डं गजाननम् तव पदे अस्ति
सुखं गौरीपुत्रं विनायकं प्रथम वन्दे श्री गणेश..!
अर्थ: हे गजपति गजानन, सारी खुशियाँ आपके चरणों में हैं। हे गौरीपुत्र विनायक श्री गणेश, हम सबसे पहले आपकी पूजा करते हैं।
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्..!
अर्थ: लेना, देना, खाना, खिलाना, राज़ बताना और सुनना ये सभी प्यार के 6 लक्षण हैं।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता..!
अर्थ: इस श्लोक में आचार्य चाणक्य मीठे वचन बोलने की सीख दे रहे हैं, हमें हमेशा मीठे और सुखद वचन बोलने चाहिए क्योंकि इसे सुनने से सभी प्राणी प्रसन्न होते हैं इसलिए हमें मीठे वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम्..!
अर्थ: उन्हें विद्या नहीं मिलती, जिनके पास विद्या नहीं है वे धन नहीं कमा सकते, जो गरीब हैं उनके मित्र नहीं होते और मित्रों के बिना सुख नहीं मिलता।
मानात् वा यदि वा लोभात् क्रोधात् वा यदि वा भयात्
यो न्यायं अन्यथा ब्रूते स याति नरकं नरः..!
अर्थ: ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई अहंकार लालच, क्रोध या भय के कारण गलत निर्णय लेता है, तो उसे नरक में जाना पड़ता है।
अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर
वचनम पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च..!
अर्थ: अपमान करके देना, देर से देना, मुकर जाना, कटु वचन बोलना और देने के बाद पछताना – ये पाँच कर्म दान को नष्ट कर देते हैं।
Motivational Suvichar in Hindi
मस्तके शशि धारणं असुर जलंधर
मर्दनं हलाहल पीत्वा यत् प्रभु उच्यते..!
अर्थ: मस्तक पर जो शशि (चंद्रमा) धारण करता है जिसने जलन्धर नमक दैत्य का वध किया तथा हलाहल विष का पान कर जो प्रभु नीलकंठ कहलाए..!
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया। लक्ष्मी
दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं..!
अर्थ: जिस मनुष्य की वाणी मधुर होती है, जिसका कार्य परिश्रम से भरा होता है, जिसका धन परोपकार में खर्च होता है, उसका जीवन सफल होता है।
न गृहं गृहमित्याहुः गृहणी गृहमुच्यते
गृहं हि गृहिणीहीनं अरण्यं सदृशं मतम्..!
अर्थ: जब तक घर में गृहिणी न हो वह घर नहीं बल्कि जंगल है, इसलिए घर में गृहिणी का होना आवश्यक है।
बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः..!
अर्थ: जो व्यक्ति परिश्रमी नहीं है और अपने धर्म का पालन नहीं करता है वह शक्तिशाली होने पर भी कमजोर है, अमीर होने पर भी गरीब है और पढ़ा-लिखा होने पर भी अज्ञानी है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं..!
अर्थ: जो मनुष्य बड़ों को नमस्कार करता है और जो मनुष्य प्रतिदिन बड़ों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है।
वायूनां शोधकाः वृक्षाः रोगाणामपहारकाः
तस्माद् रोपणमेतेषां रक्षणं च हितावहम्..!
अर्थ: पेड़ हवा को शुद्ध करते हैं और बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं, इसलिए पेड़ लगाना और उनकी रक्षा करना जानवरों के लिए फायदेमंद है।
हस्तस्य भूषणम दानम, सत्यं कंठस्य भूषणं
श्रोतस्य भूषणं शास्त्रम,भूषनै:किं प्रयोजनम..!
अर्थ: हाथ का आभूषण दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनना है, अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्
प्रियं च नानृतम् ब्रूयात्, एष धर्मः सनातन:..!
अर्थ: हमें सदैव सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य बोलना चाहिए लेकिन अप्रिय नहीं। प्रिय लेकिन असत्य नहीं बोलना यही सनातन धर्म है।
यस्तु संचरते देशान् यस्तु सेवेत पण्डितान्
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि..!
अर्थ: ऐसा व्यक्ति जो विभिन्न देशों में यात्रा करता हो और विद्वानों से संबंध रखता हो। उस व्यक्ति की बुद्धि पूरे पानी में फैली हुई तेल की एक बूंद के समान है।
वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत:..!
अर्थ: हमेशा अपने चरित्र की रक्षा करें, क्योंकि चरित्रवान व्यक्ति के लिए चरित्र ही सब कुछ होता है, धन आता है और चला जाता है। जब धन चला जाता है तो उसे पुनः प्राप्त किया जा सकता है लेकिन जब चरित्र खो जाता है तो उसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहता है और मृत व्यक्ति के समान हो जाता है।
चन्दनं शीतलं लोके, चन्दनादपि चन्द्रमाः
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः..!
अर्थ: चंदन को दुनिया का सबसे ठंडा मलहम माना जाता है लेकिन कहा जाता है कि चंद्रमा उससे भी ज्यादा ठंडक देता है लेकिन इन सबके अलावा अच्छे दोस्तों की संगति सबसे ज्यादा ठंडक और शांति देती है।
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति..!
अर्थ:
जिस व्यक्ति का अपना कोई विवेक नहीं है, उसके लिए धर्मग्रंथ क्या करेंगे? जिस प्रकार बिना आँख वाले व्यक्ति के लिए दर्पण बेकार है।
न हि कश्चित विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति अतः
श्वः करणीयानी कुर्यादद्यैव बुद्धिमान..!
अर्थ: कोई भी भविष्य नहीं जानता, कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा। इसलिए जो काम कल करना चाहिए उसे आज ही करना बुद्धिमानी है।
दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्
यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्..!
अर्थ: मनुष्य को दिन में काम करना चाहिए ताकि रात को चैन की नींद सो सके और जीते जी काम करना चाहिए ताकि मरने के बाद सुख से जी सके।
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन..!
अर्थ: कान में बालियां पहनने से सुंदरता नहीं बढ़ती, बल्कि ज्ञान की बातें सुनने से सुंदरता बढ़ती है। हाथों की खूबसूरती कंगन पहनने से नहीं बल्कि दान देने से आती है। धर्मात्मा का शरीर भी चंदन से नहीं बल्कि दूसरों के हित में किए गए कर्मों से सुशोभित होता है।
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम्
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्..!
अर्थ: महर्षि वेदव्यास ने अपने पुराणों में दो बातें कही हैं पहला दूसरों का भला करना और दूसरा अपने कारण दूसरों को कष्ट देना।
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं
चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं..!
अर्थ: घोड़े की सुंदरता उसकी गति है और हाथी की सुंदरता उसकी मदमस्त चाल है। महिलाओं की सुंदरता उनकी विभिन्न कार्यों में दक्षता के कारण है और पुरुषों की सुंदरता उनकी मेहनतीता के कारण है।
निष्कर्ष
आज हमने इस लेख में माध्यम से आपको सुविचार अर्थ सहित बताये हैं। अब आप हमारे इस आर्टिकल को पढ़कर आपको हिंदी सुविचार और अर्थ जानने को मिल गए होंगे। इन सुविचारो को आप अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं। अगर आप ऐसे लेख रोजाना पढ़ना चाहते हैं तो suvicharin.com पर हमेशा विजिट करते रहें।
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