Best 101+ Zakir Khan Shayari in Hindi | जाकिर खान शायरी (2024)
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको 101+ Zakir Khan Shayari जाकिर खान शायरी बताई है जो कि बहुत ही ज्यादा बेहतरीन लाजवाब शायरी है और यकीनन आपको पसंद आने वाली है। दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि जाकिर खान की शायरी आज बहुत ही ज्यादा मशहूर शायरी हो चुकी है और विश्व भर के लोग जाकिर खान की शायरी को पसंद करते हैं और जाकिर खान की शायरी को अपना सपोर्ट करते हैं।
अगर आप भी जाकिर खान की शायरी को पसंद करती है और Zakir Khan Shayari जाकिर खान शायरी को पढ़ना चाहते हैं तो अब आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हमने आपको 101 से भी ज्यादा जाकिर खान की मशहूर शायरी बताई है जो कि आशा करते हैं आपको यकीनन वह पसंद आएंगी। आईये दोस्तो जानते हैं 101 से भी ज्यादा जाकिर खान की शायरी कौन सी है।
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तेरी बेवफाई के अंगारों में लिपटी रही है रूह मेरी,
मैं इस तरह आग ना होता जो हो जाती तू मेरी।
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूं मैं,
जिंदगी कितना धीरे चला हूं मैं।
और मुझे जगाने जो और भी हसीन होकर आते थे,
उन ख्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूं मैं।
बस का इंतजार करते हुए मेट्रो में खड़े-खड़े,
रिक्शा में बैठे हुए क्या देखते रहते हो।
यह गुम सा चेहरा लिए क्या सोचते रहते हो,
घर नहीं जा पाए ना इस बार भी।
वह आग नहीं रही मैं शोलों सा दहकता हूं,
रंग भी सबके जैसा है सब जैसा ही तो महकता हूं।
एक अर्शे से हूँ थामें कश्ती को भंवर में,
तूफान से भी ज्यादा साहिल से सिहरता हूँ।
दिन रात मेहनत करने के बाद भी गला घोट घोट कर जीना,
खाने का वक्त है नहीं और काम बहुत ज्यादा।
इज्जत कम और पैसे उससे भी कम,
किसी के कहे पर भरोसा हो जाए ऐसी किसी में भी बात नहीं।
ऐ बड़े शहर तेरा बहुत कर्जा है मुझ पर,
सब चुकाऊंगा बारी-बारी से।
धूप देखी है अच्छी है त्स्रकार करती आंखें,
कदमों से चल चल कर रास्तों का नाम बदलते देखा है।
कि बहुत महंगे थे पर अब सस्ते में नही आयेंगे,
जा आज के बाद तेरे रस्ते में नही आयेंगे।
वो तितली की तरह आई और जिंदगी को पाक कर गयी,
मेरे जितने थे नापाक इरादे उन्हें भी पाक कर गयी।
बहुत मासूम लड़की है इश्क की बात नही समझती,
न जाने किस दिन में खोए रहती है मेरी रात नहीं समझती।
बताने की बात तो नहीं है पर बताने दोगी क्या,
इश्क बेपनाह है तुमसे एक बार जताने दोगी क्या।
और तुम नदी तुम पहाड़ तुम आसमान हो मेरा,
एक डिबिया में सिदूर रखा है मेरे पास लगाने दोगी क्या।
वो रिश्ता मेरे लिए दो का पहाड़ा,
उसके लिए सात का हो गया है।
मुझसे भुलाया नहीं जाता उसे याद दिलाना पड़ता है।
मैं शुन्य पे सवार हूँ बेअदब खुमार हूँ,
अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हजार हूँ।
जिद में आकर उनसे ताल्लुक तोड़ लिया हमने,
अब सुकून उनको नहीं और बेकरार हम भी हैं।
नींद चुराने वाले पूछते हैं सोते क्यों नही,
इतनी ही फिक्र है तो फिर हमारे होते क्यों नही।
कद बढ़ा नहीं करते ऐड़ियां उठाने से,
ऊंचाईया तो मिलती हैं, सर झुकाने से।
दो शब्द तसल्ली के नहीं मिलते इस शहर में,
लोग दिल में भी दिमाग लिए घूमते हैं।
नजरों में दोस्तों की जो इतना खराब है,
उसका कसूर ये है कि वो कामयाब है।
बे-फिजूली की जिंदगी का सिल-सिला ख़त्म,
जिस तरह की दुनिया उस तरह के हम।
हम उस तकदीर के सबसे पसंदीदा खिलौना हैं,
वो रोज़ जोड़ती है मुझे फिर से तोड़ने के लिए।
जिन जख्मो से खून नहीं निकलता,
समझ लेना वो ज़ख्म किसी अपने ने ही दिया है।
इतना कहाँ मशरूफ हो गए हो तुम,
आजकल दिल दुखाने भी नहीं आते।
मेरी आवाज़ ही परदा है मेरे चेहरे का,
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ, मुझको वहाँ से सुनिए।
तेरी मोहब्बत को कभी खेल नही समझा,
वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नही।
कुछ अलग सा है अपनी मोहब्बत का हाल है,
तेरी चुप्पी और मेरा सवाल।
आजकल देखभाल कर होते हैं प्यार के सौदे,
वो दौर और थे जब प्यार अन्धा होता था।
मेरे दर्द ने मेरे ज़ख्मों से शिकायत की है,
आँसुओं ने मेरे सब्र से बगावत की है।
ग़म मिला है तेरी चाहत के समंदर में,
हाँ मेरा जुर्म है कि मैंने मोहब्बत की है।
तुझे जब देखता हूँ तो खुद अपनी याद आती है,
मेरा अंदाज़ हँसने का कभी तेरे ही जैसा था।
बहुत जुदा है औरों से मेरे दर्द की कैफियत,
ज़ख्म का कोई पता नहीं और तकलीफ की इन्तेहाँ नहीं।
देने आये हैं मेरे दर्द की कीमत मुझको,
इतने हमदर्द हैं न जाने क्यों लोग मेरे।
वो आज खूने-दिल से मेंहदी लगाये बैठे हैं,
सारे किस्से मेरे दिल से लगाये बैठे हैं।
ख़ामोशी में भी एक शोर है उनकी,
सुर्ख जोड़े में खुद को बेवा बनाये बैठे हैं।
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अगर मोहब्बत की हद नहीं कोई,
तो दर्द का हिसाब क्यूँ रखूं।
नसीहत अच्छी देती है दुनिया,
अगर दर्द किसी ग़ैर का हो।
गुलशन की बहारों पे सर-ए-शाम लिखा है,
फिर उस ने किताबों पे मेरा नाम लिखा है।
ये दर्द इसी तरह मेरी दुनिया में रहेगा,
कुछ सोच के उस ने मेरा अंजाम लिखा है।
रोज़ पिलाता हूँ एक ज़हर का प्याला उसे,
एक दर्द जो दिल में है मरता ही नहीं है।
झूठी हँसी से जख्म और बढ़ता गया,
इससे बेहतर था खुलकर रो लिए होते।
उजड़ जाते हैं सर से पाँव तक वो लोग जो,
किसी बेपरवाह से बे-पनाह मोहब्बत करते हैं।
मुझसे खुशनसीब हैं मेरे लिखे ये लफ्ज,
जिनको कुछ देर तक पढ़ेगी निगाहे तेरी।
लोग पूछते हैं क्यों सुर्ख हैं तुम्हारी आँखे,
हंस के कह देता हूँ रात सो ना सका।
लाख चाहूं मगर ये कह ना सकूँ,
रात रोने की हसरत थी रो ना सका।
मोहब्बत मुकद्दर है कोई ख़्वाब नही,
ये वो अदा है जिसमें हर कोई कामयाब नही।
जिन्हें मिलती मंज़िल उंगलियों पे वो खुश है,
मगर जो पागल हुए उनका कोई हिसाब नही।
उसने हर नशा सामने लाकर रख दिया और कहा,
सबसे बुरी लत कौन सी हैं, मैने कहा तेरे प्यार की।
मेरे इरादे मेरी तक़दीर बदलने को काफी हैं,
मेरी किस्मत मेरी लकीरों की मोहताज़ नहीं।
अपनी हार पर इतना शकून था मुझे,
जब उसने गले लगाया जीतने के बाद।
हमारा कत्ल करने की उनकी साजीश तो देखो,
गुजरे जब करीब से तो चेहरे से पर्दा हटा लिया।
गिरना था जो आपको तो सौ मक़ाम थे,
ये क्या किया कि निगाहों से गिर गए।
दुनिया फ़रेब करके हुनरमंद हो गई,
हम ऐतबार करके गुनाहगार हो गए।
हुआ सवेरा तो हम उनके नाम तक भूल गए,
जो बुझ गए रात में चरागों की लौ बढ़ाते हुए।
एक उमर बीत चली है तुझे चाहते हुए,
तू आज भी बेखबर है कल की तरह।
अना कहती है इल्तेजा क्या करनी,
वो मोहब्बत ही क्या जो मिन्नतों से मिले।
आसमान से तोड़ कर सितारा दिया है,
आलम-ए-तन्हाई में एक शरारा दिया है।
मेरी किस्मत भी नाज़ करती है मुझपे,
खुदा ने दोस्त ही इतना प्यारा दिया है।
जिसके नसीब मे हों ज़माने की ठोकरें,
उस बदनसीब से ना सहारों की बात कर।
बुला रहा है कौन मुझको उस तरफ,
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है।
बेहतर से बेहतर की तलाश करो,
मिल जाए नदी तो समंदर की तलाश करो।
टूट जाते हैं शीशे पत्थरों की चोट से,
तोड़ से पत्थर ऐसे शीशे की तलाश करो।
जंग में कागज़ी अफ़रात से क्या होता है,
हिम्मतें लड़ती हैं तादाद से क्या होता है।
सबब तलाश करो अपने हार जाने का,
किसी की जीत पर रोने से कुछ नहीं होगा।
उठो तो ऐसे उठो कि फक्र हो बुलंदी को,
झुको तो ऐसे झुको बंदगी भी नाज़ करे।
ज़िंदगी जब जख्म पर दे जख्म तो हँसकर हमें,
आजमाइश की हदों को आजमाना चाहिए।
खुदा तौफीक देता है उन्हें जो यह समझते हैं,
कि खुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तकदीरें।
हर मील के पत्थर पर लिख दो यह इबारत,
मंजिल नहीं मिलती नाकाम इरादों से।
पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,
इक औलाद की तकलीफ़ से माँ टूट जाती है।
कल माँ की गोद में, आज मौत की आग़ोश में,
हम को दुनिया में ये दो वक़्त बड़े सुहाने से मिले।
आँसू निकले परदेस में भीगा माँ का प्यार,
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार।
भूल जाता हूँ परेशानियां ज़िंदगी की सारी,
माँ अपनी गोद में जब मेरा सर रख लेती है।
है गरीब मेरी माँ फिर भी मेरा ख्याल रखती है,
मेरे लिए रोटी और अपने लिए पतीले की खुरचन रखती है।
बालाएं आकर भी मेरी चौखट से लौट जाती हैं,
मेरी माँ की दुआएं भी कितना असर रखती हैं।
वो उजला हो के मैला हो या मँहगा हो के सस्ता हो,
ये माँ का सर है इस पे हर दुपट्टा मुस्कुराता है।
बेसन की रोटी पर खट्टी चटनी सी माँ याद आती है चौका,
बासन चिमटा, फूंकनी जैसी माँ।
शहर में आ कर पढ़ने वाले ये भूल गए,
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था।
नींद भी भला इन आँखों में कहाँ आती है,
एक अर्से से मैंने अपनी माँ को नहीं देखा।
मंजिल मिले न मिले ये तो मुकद्दर की बात है,
हम कोशिश ही न करे ये तो गलत बात है।
जब टूटने लगे हौंसला तो बस ये याद रखना,
बिना मेहनत के हासिल तख़्त-ओ-ताज नहीं होते।
ढूढ़ लेना अंधेरे में ही मंजिल अपनी दोस्तों,
क्योंकि जुगनू कभी रोशनी के मोहताज़ नहीं होते।
ज़िंदा रहना है तो हालात से डरना कैसा,
जंग लाज़िम हो तो लश्कर नहीं देखे जाते।
अभी मुठ्ठी नहीं खोली है मैंने आसमां सुन ले,
तेरा बस वक़्त आया है मेरा तो दौर आएगा।
दिल की धड़कन और मेरी सदा है तू,
मेरी पहली और आखिरी वफ़ा है तू।
चाहा है तुझे चाहत से भी बढ़ कर,
मेरी चाहत और चाहत की इंतिहा है तू।
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नसीहत अच्छी देती है दुनिया,
अगर दर्द किसी ग़ैर का हो।
इस दुनिया में लाखों लोग रहते हैं,
कोई हँसता है तो कोई रोता है।
पर सबसे सुखी वही होता है,
जो शाम को दो पैग मार के सोता है।
दुनिया फ़रेब करके हुनरमंद हो गई,
हम ऐतबार करके गुनाहगार हो गए।
दोस्ती में दोस्त, दोस्त का ख़ुदा होता है,
महसूस तब होता है जब वो जुदा होता है।
ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,
अपने-अपने हिस्से की दोस्ती निभाएंगे।
ऐसा लगता है कुछ होने जा रहा है,
कोई मीठे सपनों में खोने जा रहा है।
धीमी कर दे अपनी रोशनी ऐ चाँद,
मेरा कोई अपना अब सोने जा रहा है।
नजर से दूर रहकर भी किसी की सोच में रहना,
किसी के पास रहने का तरीका हो तो ऐसा हो।
न सो सका हूँ न शब जाग कर गुज़ारी है,
अजीब दिन हैं सुकूँ है न बे-क़रारी है।
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूं नहीं होता,
मैं हर दिन जाग तो जाता हूं ज़िन्दा क्यूं नहीं होता।
पहली मोहब्बत के लिए दिल जिसे चुनता है,
वो अपना हो न हो दिल पर राज हमेशा उसी का रहता है।
कर दे नज़रे करम मुझ पर मैं तुझपे ऐतबार कर दूँ,
दीवाना हूँ तेरा ऐसा कि दीवानगी की हद को पार कर दूँ।
बड़ी उदास है ज़िंदगी तेरे बिन नहीं है कुछ मेरे पास तेरे बिन,
अँधेरा हो या हो उजाला आता नहीं कुछ भी रास तेरे बिन।
जानते है वो फिर भी अनजान बनते हैं,
इसी तरह वो हमे परेशान करते हैं।
पूछते है हमसे की आपको क्या पसंद है,
खुद जवाब होकर सवाल करते हैं।
खोया में जिस भी राह वह मंजिल पर जा खुली,
फिर रुसवाईयां मैंने पर मोहब्बत मुझे मिली।
और बद्दुआ ने जब-जब काटा है मेरा रास्ता,
मुझसे भी पहले मेरी मां की दुआ निकली।
तेरे जाने के बाद मैं जो रह जाऊंगा मुझसे तो नहीं संभालता,
इसलिए पत्थर कर लिया है दिल को अब कहीं नहीं पिघलता।
इश्क बहुत जरूरी है जिंदगी के लिए पर यह जरूरी नहीं कि वह जिंदगी भर रहे,
पर एक चीज जो जिंदगी भर आपके साथ रहती है।
आखिरी सांस तक आपके साथ रहती है,
वह है आप और आपका आत्म सम्मान।
बिगड़ गए थे इश्क में थोड़े बहुत,
दिल टूटा फिर दिल तोड़े बहुत।
गैर को मुंह लगाकर देख लिया,
सब झूठ सच आजमा के देख लिया।
और नहीं आ रही है बजट में तेरी सैंडल परवीन,
जमाने भर का कूपन कोड हमने लगा कर देख लिया।
रुसवाई के समुद्र को पार कर दूंगा,
मैं तेरी जीती हुई बाजी को हार कर दूंगा।
और मिलेंगे कई साल बाद तो तुम ही याद दिलाओगे,
मैं सुन लूंगा पूरा फिर इनकार कर दूंगा।
लहू के थे जो रिश्ते उन्हें छोड़ के आ गए,
सुकून आंखों के सामने था मुंह मोड़ के आ गए।
और खजाने लुट रहे थे मां-बाप की छांव में,
हम कौड़ियों के खातिर घर छोड़ कर आ गए।
हर रात एक शहर बिस्तर में सोया छोड़कर,
नए की तरफ सफर पर निकल पड़ता हूं।
नदी आती है जंगल आता है,
बस घर नहीं आता।
लो खरीद लो अब इससे कीमती कुछ भी नहीं है मेरे पास,
जिसमें रखा था गुलाब हम वो किताब बेचने आए हैं।
हालात की बंजर जमीन फाड़ कर निकला हूं मैं शोहरत की धूप में नहीं जलूंगा,
आप बस साथ निभाए रखिएगा अभी तो मैं लंबा चलूंगा।
क्या तकल्लुफ करें यह कहने में,
जो भी खुश हैं उनसे जलते हैं।
बहुत से ख्वाब देखोगे तो आंखें,
तुम्हारा साथ देना छोड़ देगी।
आसमान इतना बुलंदी पर जो इतराता है,
भूल जाता है जमीन से ही नजर आता है।
वह तितली की तरह आई और जिंदगी को बाग कर गई,
मेरे जितने नापाक थे इरादे उन्हें भी पाक कर गई।
बेवजह बेवफाओं को याद किया है,
गलत लोगों पर बहुत वक्त बर्बाद किया है।
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई पहले भी बहुत से,
पर तुम जितना कोई उनमें से कभी याद नहीं आया।
माना कि तुमको इश्क का तजुर्बा भी कम नहीं,
हमने भी बाग में है कई तितलियां उडायीं।
हर एक दस्तूर से बेवफाई,
मैंने शिद्दत से है निभाई।
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे,
और मंजिल भी खुद बनाई।
निष्कर्ष
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको 101+ Zakir Khan Shayari जाकिर खान शायरी बताई हैं जो कि बहुत ही ज्यादा बेहतरीन शायरी में से एक हैं और यकीनन आपको भी पसंद आई होंगी। और आशा करते हैं कि आपको भी हमारे आज के इस आर्टिकल में लिखी शायरी पसंद आई होंगी। अगर आपको हमारा आज का यह आर्टिकल पसंद आया हो तो आप इसे दोस्तों में भी जरुर शेयर करें ताकि वह भी आज के इस आर्टिकल में पढ़ सकें।